Agrotrace AI Equipped: मिट्टी की प्यास बुझाएगा ये देसी जुगाड़! खाद-पानी का खर्चा होगा आधा!

क्या आपकी खेती भी पानी और खाद के महंगे बिलों से परेशान है? तो ये खबर आपके लिए ही है! IIT कानपुर के कमाल के दिमागों ने मिलकर एक ऐसा देसी जुगाड़ बनाया है, जो आपकी खेती की लागत को 40% तक कम कर देगा!

ये है क्या चीज़?

ये है एग्रोट्रेस (AgroTrace) डिवाइस! नाम तो थोड़ा टेक्निकल है, लेकिन काम एकदम आसान। ये डिवाइस आपके खेत की मिट्टी को 24 घंटे मॉनिटर करेगा और बताएगा कि कब आपके खेत को पानी और खाद की असली जरूरत है। अब अंदाजे से खाद-पानी डालने का झंझट खत्म! 🙅‍♂️

कैसे काम करेगा?

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के रिपोर्ट के अनुसार, एग्रोट्रेस डिवाइस में लगे हैं खास सेंसर और बैटरी। ये सेंसर मिट्टी के अंदर नमी और तापमान को मापते रहेंगे। फिर, ये जानकारी आपके मोबाइल पर भेज दी जाएगी। सबसे अच्छी बात ये है कि इसकी बैटरी को 2 साल तक चार्ज करने की भी जरूरत नहीं है! 🔋

किसानों को क्या फायदा?

लखनऊ के किसान चैतन्य तिवारी ने बताया कि उन्होंने इस डिवाइस को सीतापुर में अपने फार्महाउस पर लगाया है। उनका कहना है कि अब उन्हें मोबाइल पर ही पता चल जाता है कि फसल को कब पानी चाहिए। इससे पानी की बचत तो हो ही रही है, फसल भी अच्छी हो रही है। सिर्फ चैतन्य ही नहीं, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के किसान भी इस डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हैं और फायदा उठा रहे हैं। हरियाणा में तो खीरे की खेती करने वाले किसानों की पैदावार 2-3 गुना तक बढ़ गई है! 🥒

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कौन बना रहा है ये कमाल की डिवाइस?

इस डिवाइस को बनाया है एग्रीटेक स्टार्टअप एग्रोट्रेस, IIT कानपुर की मदद से। कंपनी के मालिक रजनीश तिवारी का कहना है कि ये डिवाइस उन इलाकों के लिए बहुत फायदेमंद है जहां पानी की कमी है। एक एकड़ खेत के लिए एक डिवाइस काफी है।

दावा है दम या हवा?

कंपनी का दावा है कि एग्रोट्रेस डिवाइस से सिंचाई और खाद की लागत 40% तक कम हो सकती है। अभी ये डिवाइस 100 किसानों के खेतों में इस्तेमाल हो रही है और शुरुआती नतीजे तो काफी अच्छे दिख रहे हैं। सब्जी और फल उगाने वाले किसानों को इससे सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है।

निष्कर्ष:

एग्रोट्रेस डिवाइस किसानों के लिए एक बेहतरीन तकनीक साबित हो सकती है। अगर ये डिवाइस वाकई में लागत कम करने और पैदावार बढ़ाने में मदद करती है, तो ये खेती में एक बड़ा बदलाव ला सकती है। ज़रूरत है कि इस तकनीक को और किसानों तक पहुंचाया जाए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसका फायदा उठा सकें।

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